भारत में त्योहारों और व्रतों का विशेष महत्व है और तीज व्रत उनमें से एक है जो विशेष रूप से महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। यह व्रत विवाहित महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए बेहद खास माना जाता है। तो आइए जानते हैं तीज व्रत की शुरुआत कैसे हुई, इसे क्यों मनाया जाता है और इसकी पूजा विधि क्या है।
तीज व्रत की शुरुआत
तीज व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में, खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत की कोई स्पष्ट ऐतिहासिक तिथि नहीं है, लेकिन पुराणों और लोककथाओं में इस व्रत का उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि यह व्रत माता पार्वती से जुड़ा है।
कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या और व्रत किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। उसी तपस्या की याद में तीज व्रत की शुरुआत हुई। इसे हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज जैसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। ये सभी तीज सावन और भाद्रपद माह में आती हैं, जब प्रकृति हरियाली से भरपूर होती है।
तीज क्यों मनाई जाती है?
विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए तीज का व्रत रखती हैं। वहीं, अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। यह व्रत न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी विशेष है। इस दिन महिलाएं एकत्रित होती हैं, नए वस्त्र पहनती हैं, मेहंदी लगाती हैं, झूला झूलती हैं और लोकगीत गाती हैं। यह महिलाओं का एक प्रकार का त्योहार है, जिसमें वे अपनी खुशी और भक्ति व्यक्त करती हैं।
तीज व्रत माता पार्वती और भगवान शिव के प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची श्रद्धा और विश्वास से हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
तीज व्रत पूजा विधि
तीज व्रत बड़ी श्रद्धा और नियमों के साथ रखा जाता है। इसे निर्जला (बिना जल के) या सजल (जल और फलों के साथ) दोनों तरह से रखा जा सकता है। तीज व्रत की सामान्य पूजा विधि नीचे दी गई है:
संकल्प और तैयारी:
सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ़ कपड़े पहनें। सुहागिन महिलाएँ लाल, हरे या पीले रंग के वस्त्र पहनें, जो सौभाग्य के प्रतीक हैं।
पूजा के लिए एक आसन पर लाल कपड़ा बिछाएँ। उस पर माता पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजा सामग्री:
फूल, चंदन, रोली, अक्षत (चावल), दीपक, धूप, मिठाई, फल और सुहाग की वस्तुएँ (जैसे मेहंदी, चूड़ियाँ, सिंदूर)।
कुछ स्थानों पर मिट्टी से शिव-पार्वती की छोटी मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।
पूजा विधि:
सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें, क्योंकि हर शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी से होती है।
फिर माता पार्वती और भगवान शिव को फूल, चंदन, रोली और अक्षत चढ़ाएँ।
दीप और धूप जलाएँ। तीज व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। यह कथा देवी पार्वती की तपस्या और शिव से उनके विवाह की कथा है।
माता पार्वती को सुहाग की वस्तुएँ (16 श्रृंगार) अर्पित करें।
व्रत और कथा:
पूरे दिन उपवास रखें। यदि आप निर्जला व्रत नहीं रख सकते, तो फल और दूध ग्रहण कर सकते हैं।
शाम को कथा सुनने के बाद आरती करें। “ॐ नमः शिवाय” और “पार्वती माता की जय” मंत्र का जाप करें।
व्रत का पारण:
अगले दिन सुबह की पूजा के बाद व्रत तोड़ा जाता है। कुछ स्थानों पर, चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत तोड़ा जाता है।
तीज से जुड़ी विशेष बातें
हरियाली तीज: सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इस दिन चारों ओर प्रकृति की हरियाली बिखरी होती है।
कजरी तीज: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इसे नीम की पूजा के लिए भी जाना जाता है।
हरतालिका तीज: यह सबसे कठिन तीज व्रत माना जाता है, जो भाद्रपद शुक्ल तृतीया को पड़ता है। इसमें निर्जला व्रत रखा जाता है।
इस दिन महिलाएं झूला झूलती हैं और कजरी या लोकगीत गाती हैं, जो तीज के आकर्षण को और बढ़ा देते हैं।
आज के समय में तीज
आज भी तीज व्रत उसी उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालाँकि, अब लोग इसे अपने-अपने तरीके से मनाते हैं। कुछ महिलाएं व्रत के साथ-साथ तीज मेले में जाती हैं, तो कुछ अपनी मेहँदी और श्रृंगार की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करती हैं। लेकिन इस त्योहार का असली मकसद एक ही है – प्यार, विश्वास और परिवार की खुशहाली की कामना।
निष्कर्ष
तीज व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम और समर्पण का उत्सव है। यह हमें माता पार्वती की भक्ति और आस्था से प्रेरणा लेने का अवसर देता है। अगर आप भी यह व्रत रखने की सोच रहे हैं, तो इसे पूरी श्रद्धा और सादगी से करें। इससे न केवल आपके मन को शांति मिलेगी, बल्कि आपके परिवार में भी खुशियाँ आएंगी।
